शब्द, शब्दावली के
मोहताज हो के जब
छटपटाते हैं
वो आंसू बनके
a blog by o p rathore
वो चाहे तो क्या मुझे ख़ुश नहीं कर सकता ॽ
उसे पता है ख़ुश लोग उससे छूट जाते हैं
सरपरस्ती में रहने वाले भी तो ख़ुश रहते हैं।
Hymns for him
और धुंध में खो जाते हैं
वही हैं मेरे गांव के लोग
उन्हीं के वहां से आया हूं मैं
वहीं उदासीन मोहल्ले में मेरा घर पड़ता है
ओढ़ के कंबल ज़िद का जब नहीं होता गुजारा
तो एक चादर अधूरे ख्वाबों की भी ढांप लेता हूं
लगता है जाड़ा अकेलेपन का जब भी
तेरी मगरूर यादों की तपिश ताप लेता हूं।
- ओपियम
सब पूछते हैं मुझसे..