a blog by o p rathore
कभी तुमने सर नहीं लगाया कंधे से मेरे
जब हम जा रहे थे मैं ड्राइव करता था
आज समझ आई वजह
तुम ढूंढ नहीं पाई प्रेमी मुझमें
मैं पति बना रहा
बैल बना रहा गृहस्थी के हल का
जिंदगी प्रेमी को चाहती है मगर ब्याहती पति से है
यह विसंगति जी है तुमने हमने ।
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