Friday, April 18, 2025

 



रात का इंतज़ार दिन से मिलने को 

अंधेरों से होकर गुज़रता है 

दुश्वारियों से बीतता है 

तब जो मेल होता है रात से दिन का 

उसे हम सुबह कहते हैं।  

दोपहर को भी रात की हसरत होती है
 
मिलने की कसक रहती है 

वो गुज़रता है उजालों से 

अहम् अधिकारों के जालों से 

इस दिन और रात के मिलाप को हम 

शाम कहते हैं।  

मुलाकातों में कितना फ़र्क़ आ जाता है 

उन रास्तों की वजह से जिनसे हम गुज़रते हैं
 
ये हम ही तय करते हैं की रिश्ते 

ताज़ा दम संवरते हैं या मुरझा के बिखरते हैं।  

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