Tuesday, September 20, 2011

धूप नहाई बारिश में
आग लगाई बारिश में
खेतों ने इक मुद्दत की
प्यास बुझाई बारिश में
सूरज गीला-गीला सा
दिया दिखाई बारिश में
भीगा दिल का कागज़ भी
एक तिहाई बारिश में
दिल की किससे होती है
हाथा-पाई बारिश में
ख़्वाब तो आये ख़ूब मगर
नींद न आई बारिश में
छतरी बेचके तुमने की
ख़ूब कमाई बारिश में

1 comment:

Geeta said...

Wow !! Philosophical n comical too !!