Tuesday, September 20, 2011


दिल के दरवाज़े पे
वो चौखट लगाना भूल गया
मन की देहलीज़ पे
दीया जलाना भूल गया
रात रह रह के जगाती रही
रात भर
कोई ख्वाब आ आ के
लौट जाना भूल गया....

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