कलयुग परसों युग
बेहतरी से तरी निकल गई सुख धूप में पूरा सूख गया है,
मेरा दोस्त गया गया है
चुक गया है या चूक गया है,
छाती पे छत रख ली है दुनिया की
ग़रीब मुंह खोल के सो गया है
आऊँगा जब अधर्म होगा बहुत
कोई है जो सबसे बोल गया है
सोच रहा हूँ मुंह पे हाथ रख के
पोलो खा ली है या दिमाग में होल हुआ है.
No comments:
Post a Comment