a blog by o p rathore
ओढ़ के कंबल ज़िद का जब नहीं होता गुजारा
तो एक चादर अधूरे ख्वाबों की भी ढांप लेता हूं
लगता है जाड़ा अकेलेपन का जब भी
तेरी मगरूर यादों की तपिश ताप लेता हूं।
- ओपियम
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