Saturday, May 25, 2019

पॉलिटिक्स एक ऐसा संसार है जहां पर 
खुद को शामिल करके अपनी ज़िन्दगी 
की घटत बढ़त से मन छिटक कर 
जीवन के महामार्ग पर जाता हुआ प्रतीत होता है 
कोई भी जीते कोई भी हारे 
हमे तो कोई वित्त मंत्री बनाने से रहा 
कोई हमारी फाइल दफ्तर के गलियारों में 
बढ़ाने से रहा 
पर हाँ जीवन की दरिद्रता और क्षुद्रता से कुछ 
देर को छुटकारा सा मिल जाता है 
लगने लगता है 
कि ये जो संसद या विधान सभा में बैठते हैं न 
सब अपने ही लोग हैं 
इन्हे हमने ही वहाँ बैठाया है 
और वो जानते हैं कि  
भैय्या तुम वोटरों का मनोविज्ञान जानते हैं हम 
जब चाहेंगे जैसा चाहेंगे निकलवा लेंगे तुमसे ही 
पर हम हैं कि  मस्त हैं भ्रम संसार में 
कि  हम सूरज ऊगा रहे रहे हैं 
हम ही हैं जो चाँद की बत्ती जला रहे हैं 
सवाल दर असल ये होना चाहिए कि 
हम किस गली जा रहे हैं 
( ये गाना चला दिया है मैंने.. रेडिओ शैली में ) 

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