पॉलिटिक्स एक ऐसा संसार है जहां पर
खुद को शामिल करके अपनी ज़िन्दगी
की घटत बढ़त से मन छिटक कर
जीवन के महामार्ग पर जाता हुआ प्रतीत होता है
कोई भी जीते कोई भी हारे
हमे तो कोई वित्त मंत्री बनाने से रहा
कोई हमारी फाइल दफ्तर के गलियारों में
बढ़ाने से रहा
पर हाँ जीवन की दरिद्रता और क्षुद्रता से कुछ
देर को छुटकारा सा मिल जाता है
लगने लगता है
कि ये जो संसद या विधान सभा में बैठते हैं न
सब अपने ही लोग हैं
इन्हे हमने ही वहाँ बैठाया है
और वो जानते हैं कि
भैय्या तुम वोटरों का मनोविज्ञान जानते हैं हम
जब चाहेंगे जैसा चाहेंगे निकलवा लेंगे तुमसे ही
पर हम हैं कि मस्त हैं भ्रम संसार में
कि हम सूरज ऊगा रहे रहे हैं
हम ही हैं जो चाँद की बत्ती जला रहे हैं
सवाल दर असल ये होना चाहिए कि
हम किस गली जा रहे हैं
( ये गाना चला दिया है मैंने.. रेडिओ शैली में )
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