मुझे याद नहीं आ रहा
मुझे क्या काम हुआ करते थे
शाम होती थी सिमट आता था पहलू
मेरी हर शुरुआत के अंजाम हुआ करते थे
अब कहीं भी पहुंचें तो वहीँ ठहरे हैं लगता है
पहले हर कदम पे नए मुकाम हुआ करते थे
अब कोई देख ले तो गर्माहट नहीं दिखती
पहले हर मोड़ पे पुरखुलूस सलाम हुआ करते थे
इतना तो मुझे याद है एक गली थी एक मोड़ भी था
सब अपने थे खुले रहते थे रिश्तों से मकान हुआ करते थे
बिखरी यादों का मलबा कहाँ तक बिखरा है नज़र नहीं आता
दिल के बाजार में खोटे सिक्कों के भी कुछ दाम हुआ करते थे
हर रोज़ हाथ में थमा कर चला जाता था मीठी याद
कोई अनजान, ऐसे लोग मेरी जान हुआ करते थे
मुझे याद नहीं आ रहा, या मुश्किल से भुला पाया हूँ
मुझे अपनों से कुछ काम हुआ करते थे
~ ओपियम
No comments:
Post a Comment