Sunday, March 6, 2016

बड़ी बेहोश होती है ज़िन्दगी जहां देखा हुआ नज़र नहीं आता
इतने सीखे हैं क्या क्या किस किस से  के अब अन सीखा नहीं जाता 
पजामा पहन के इंसान का कोई बन्दर  बोले मैं इंसा हूँ 
मेरी नज़रों को मेरे देखे का भरोसा नहीं आता  . 
कौन सी सोच थी जो खोखला कर गयी हमको 
इतनी हैं कि किसको इलज़ाम दें ये बतलाया नहीं जाता 
मैं रुक जाऊं तो क्या सड़क चल पड़ती है 
यहां मौत से पहले किसी को रुकना नहीं आता.  
इतनी बद गुमानी है सभी में किस की कहूँ तुमसे 
टूट जाते हैं पर मोहब्बत में भी उन्हें झुकना नहीं आता। 
मुझे आती नहीं ज़िन्दगी की रवायतें फिर भी 
घर आये मेहमान को रुस्वा करना नहीं आता 
मेरे माज़ी से  रिश्ते हैं मगर अब रूठे रहते हैं 
चली जाती हैं सब यादें ज़हन से पर तेरा चेहरा नहीं जाता।
~ ओपियम 

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