जिनको सबकी नज़रें बचा के ताड़ा था
प्रेम पर्व से पूर्व उन नामों को झाड़ा था
कभी वसंत थी कभी ग्रीष्म कभी जाड़ा था
आज उम्र के कौतुक दशक में गिन रहा
एकमुखी प्रेम का पहाड़ा था
कितनी मीठी यादें हैं कितने सुन्दर चेहरे थे
दिल पर मेरे लगे संस्कारी समाज के पहरे थे
कुछ पल में भस्म हुए कुछ पल दो पल को ठहरे थे
बहुत तो उथले उथले थे पर याद है कुछ गहरे थे
प्रेम पर्व की अंगड़ाई में हुई यादों संग सगाई है
जो लगती थीं अपनी अपनी किंचित आज पराई हैं
मन के राज महल में मैं राजा और कितनी रानियां थीं
क्या मुझको को वो चाहती होंगी दिल में ये हैरानियाँ थीं
प्रेम विरह का दंश झेलना और सामान्य दिखना
व्यक्त्तिव की यही समृद्धि है।
प्रेम खड्ड में गिर कर उठना फिर गिरना
ये मेरी उपलब्धि है
ये मेरी उपलब्धि है !!
~Opium
प्रेम पर्व से पूर्व उन नामों को झाड़ा था
कभी वसंत थी कभी ग्रीष्म कभी जाड़ा था
आज उम्र के कौतुक दशक में गिन रहा
एकमुखी प्रेम का पहाड़ा था
कितनी मीठी यादें हैं कितने सुन्दर चेहरे थे
दिल पर मेरे लगे संस्कारी समाज के पहरे थे
कुछ पल में भस्म हुए कुछ पल दो पल को ठहरे थे
बहुत तो उथले उथले थे पर याद है कुछ गहरे थे
प्रेम पर्व की अंगड़ाई में हुई यादों संग सगाई है
जो लगती थीं अपनी अपनी किंचित आज पराई हैं
मन के राज महल में मैं राजा और कितनी रानियां थीं
क्या मुझको को वो चाहती होंगी दिल में ये हैरानियाँ थीं
प्रेम विरह का दंश झेलना और सामान्य दिखना
व्यक्त्तिव की यही समृद्धि है।
प्रेम खड्ड में गिर कर उठना फिर गिरना
ये मेरी उपलब्धि है
ये मेरी उपलब्धि है !!
~Opium
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