Tuesday, July 14, 2015

दिखते  हैं नज़र आते हैं 
आँख खुलती है तो 
सपने किधर जाते हैं 
पत्ते हैं जो पेड़ को भर देते हैं 
आये जो पतझड़ तो बिखर जाते हैं 
दर्द डराता है जब तक न मिलो इससे 
रोज़ मिलते हैं तो उबर  जाते हैं  
बहुत फ़ैल के चलने वालों संभल जाओ 
आखिरी लम्हे में सब पसर जाते हैं 
आँख खुलती है तो 
सपने किधर जाते हैं 
जिनकी मंज़िल नहीं है ज़िन्दगी 
वो मुसाफिर बहुत दूर तलक  जाते हैं 

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