दिखते हैं नज़र आते हैं
आँख खुलती है तो
सपने किधर जाते हैं
पत्ते हैं जो पेड़ को भर देते हैं
आये जो पतझड़ तो बिखर जाते हैं
दर्द डराता है जब तक न मिलो इससे
रोज़ मिलते हैं तो उबर जाते हैं
बहुत फ़ैल के चलने वालों संभल जाओ
आखिरी लम्हे में सब पसर जाते हैं
आँख खुलती है तो
सपने किधर जाते हैं
जिनकी मंज़िल नहीं है ज़िन्दगी
वो मुसाफिर बहुत दूर तलक जाते हैं
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