एक कतरा शराब साकी में भी है
मेरी सहजता मेरी बेबाकी में भी है
सिर्फ प्यालों में नहीं डलती है शराब
उस की मय जिस्म तराशी में भी है
जो झूम रहे हैं बस उनको है मालूम
एक धुन चल रही है जो एकाकी में भी है
ओशो की नज़र
ॐ
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