मेरे स्वपन
या बस स्वपन
ख्वाबों के ऊँट पर बैठे
चाँद की तरह
पूर्णिमा के दीये की
बाती सुलगाती रात में
टहलते फिरते हैं
बादलों की पगड़ियाँ पहन कर
रेतों के टीलों पर ज्यों
फिसलती है हवा ...
टिब्बों पर पाँव धरके
जिस तरह भाप बनके
उड़ जाती है पानी की उम्मीद भी
वहां एक लम्हा खोटे सिक्के
में सिमट जाता है
कोहरे की रुई भरके
यादों का तकिया सिरहाने
लगाके सो जाता है...
नींद में ख्वाब आते हैं
ख्वाब तो सपने भी कहलाते हैं
मेरे हर लफ्ज़ को बहलाते हैं
सोच की सिलवट को सहलाते हैं
सपने मेरी आगोश में आ कर
मुंह खोलके सो जाते हैं।
या बस स्वपन
ख्वाबों के ऊँट पर बैठे
चाँद की तरह
पूर्णिमा के दीये की
बाती सुलगाती रात में
टहलते फिरते हैं
बादलों की पगड़ियाँ पहन कर
रेतों के टीलों पर ज्यों
फिसलती है हवा ...

जिस तरह भाप बनके
उड़ जाती है पानी की उम्मीद भी
वहां एक लम्हा खोटे सिक्के
में सिमट जाता है
कोहरे की रुई भरके
यादों का तकिया सिरहाने
लगाके सो जाता है...
नींद में ख्वाब आते हैं
ख्वाब तो सपने भी कहलाते हैं
मेरे हर लफ्ज़ को बहलाते हैं
सोच की सिलवट को सहलाते हैं
सपने मेरी आगोश में आ कर
मुंह खोलके सो जाते हैं।
5 comments:
bahut badhiya hai bhaiji....Jitu
shukriya Jitu ji
shukriya Jitu ji
op sir hi i am a big fan of you. you are awesome
Kya Baat Hai OPG. Very Nice...
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