Thursday, October 18, 2012

टिब्बे यादों के

मेरे स्वपन 
या बस स्वपन 
ख्वाबों के ऊँट पर  बैठे 
चाँद की तरह 
पूर्णिमा के दीये की 
बाती  सुलगाती रात  में 
टहलते फिरते हैं 
बादलों की पगड़ियाँ पहन कर 
रेतों के टीलों पर ज्यों 
फिसलती है हवा ...
टिब्बों पर पाँव धरके 
जिस तरह भाप बनके 
उड़ जाती है पानी की उम्मीद भी
वहां एक लम्हा खोटे  सिक्के 
में सिमट जाता है 
कोहरे की रुई भरके 
यादों का तकिया सिरहाने 
लगाके सो जाता है... 
नींद में ख्वाब आते हैं 
ख्वाब तो सपने भी कहलाते हैं 
मेरे हर लफ्ज़ को बहलाते हैं 
सोच की सिलवट को सहलाते हैं 
सपने मेरी आगोश में आ कर  
मुंह खोलके सो जाते हैं।


5 comments:

JitenderJamwal said...

bahut badhiya hai bhaiji....Jitu

Namaskar said...

shukriya Jitu ji

Namaskar said...

shukriya Jitu ji

Ajay Rawat said...

op sir hi i am a big fan of you. you are awesome

Bhartendu Bhushan Bhaskar said...

Kya Baat Hai OPG. Very Nice...