Monday, October 8, 2012

खाकी


  

यादों  की रेत से
मिट गया मेरा नाम
पर उँगलियों की फिसलन
का एहसास अभी बाकी है...
जाने कब टूटा था
दिल अब याद नहीं
बरसना होगा जिसे 
वो रुआंस अभी बाकी है...
रास्तों पर हैं 
मंजिल का पता नहीं 
नाकामयाब हैं मगर
आस अभी बाकी है....
खुद से चलके आये
करते गए सितम 
सोचा था उनसे पूरी हुई
पर तलाश अभी बाकी है...
उसकी नज़र के रंग
क्या कहने,,कभी
गुलाबी कभी आसमानी
पर टटोलता है ज़हन मेरा
लगता है रंग उसका खाकी है...
वजूद पर यूं तो हक है सबका
पर मैं जानता हूँ दिल से
बद्दुआ हो सकती है किसी की  भी
दिल से निकली है जो वो दुआ माँ की है...


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