Wednesday, November 11, 2015

दीवारों के मध्य 
दरवाज़ों के बीच 
लेटते हैं पलंग पर 
उसे घर कहते हैं 
बस दरवाज़ा नहीं होता 
इतना सा फर्क है 
उसे कबर कहते हैं 
दुनिया का हाल 
जानते हैं हम 
ध्यान में जो मिलती है उसे  
अपनी खबर कहते हैं 

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