नज़र का भरोसा नहीं
सायों का साथ है ये
तेरे लिए कुछ भी नहीं
मेरे लिए जज़्बात हैं
इतने नज़दीक से गुज़रते हैं मंज़र
पर आता नही कुछ हाथ है
हथेलियाँ छुड़ा के चल देते हैं लकीरों में रहने वाले
साँसों का बवंडर नहीं ये श्राप है
सूनी राहों पे यादें करती हैं चहलकदमी
और पांव के नीचे आ जाता है एक लम्हा
ऐसे ही तो नहीं दरक जाते हैं रिश्ते
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