Tuesday, May 21, 2013

मैंने ज़ख्म खामोश हो के सहे हैं 
ज़िन्दगी 
जब गुजरी है हद से 
ये नैन निर्झर बहे हैं 
व्यथित नहीं निराश भी नहीं 
भ्रमित हैं मन 
पता नहीं चल रहे हैं 
या खड़े हैं 
इन रास्तों पे जो हैं सीधे सादे 
 इन्ही रास्तों पर मेरी  यादों 
के मुर्दे गड़े हैं 
बच्चे थे थो चैन बहुत था 
अब सहते हैं सब कुछ 
हम घर के बड़े हैं 
मेहनत कश  कब देखते हैं 
फल जो मिले उनपे मिटटी सनी है 
या हीरे मोती जड़े  हैं 
अच्छे होने की सजा मिलती 
ज़रूर है 
घुट घुट के रोते हैं 
जो  दिल के बड़े हैं 
ज़िन्दगी के ग़म मैंने 
खामोश हो कर  सहे हैं 
ज़िन्दगी जब गुजरी है हद से 
ये नैन निर्झर बहे है
निर्झर बहे हैं 

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