मैंने ज़ख्म खामोश हो के सहे हैं
ज़िन्दगी
जब गुजरी है हद से
ये नैन निर्झर बहे हैं
व्यथित नहीं निराश भी नहीं
भ्रमित हैं मन
पता नहीं चल रहे हैं
या खड़े हैं
इन रास्तों पे जो हैं सीधे सादे
इन्ही रास्तों पर मेरी यादों
के मुर्दे गड़े हैं
बच्चे थे थो चैन बहुत था
अब सहते हैं सब कुछ
हम घर के बड़े हैं
मेहनत कश कब देखते हैं
फल जो मिले उनपे मिटटी सनी है
या हीरे मोती जड़े हैं
अच्छे होने की सजा मिलती
ज़रूर है
घुट घुट के रोते हैं
जो दिल के बड़े हैं
ज़िन्दगी के ग़म मैंने
खामोश हो कर सहे हैं
ज़िन्दगी जब गुजरी है हद से
ये नैन निर्झर बहे है
निर्झर बहे हैं
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