सिरहाने के नीचे काग़ज़ कलम रख के सोता हूँ
जाने कौन सा ख्याल बेखयाली में इधर आ जाये
आते हैं बिन बोले बिन कहे जैसे देख रहे हों
कोई इन्तेजाम नहीं रहता जब उनको लिखने का...
ये ज़िन्दगी से ताल मिलाके चलते हैं
मजबूरियों से गाल मिलाके चलते हैं
स्याही दवात सफों से नहीं बनती इनकी
ये ज़िन्दगी की बिसात पे बढ़ते पलते हैं
इन ख्यालों को सलाम इनकी दुआओं को सलाम
रुक जाएँ जो कभी तो कलाम बनते हैं
जो कह नहीं सकते उनकी आवाज़ बनते हैं
दर्द ओ शिकन की छाँव बनते हैं...
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