Tuesday, May 29, 2012

man

उम्मीदों की रीढ़ पर आरोपित उत्साहित मन नहीं था
नीर बरस रहा था निर्झर... सावन नहीं था...
पूर्ण से अवगत मन था अवचेतन नहीं था.
मैं दानी भी न था ....कृपण भी न था
सोते सोते उचटती नींदों ने जब भी पूछा
मन अशांत था कोई कारण नहीं था.
प्रसन्न तो था ही नहीं अप्रसन्न भी नहीं था..

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