Friday, September 30, 2011

saans ke katore


बहुत लोग हैं यहाँ वहां मौजूद,
हर सिम्त
वो जिंदा हैं
क्यों पता नहीं चलता?
सांस के कटोरे से क्यों लगते हैं सब
धड़कते दिल भी हैं सीने में,
लगता तो नहीं

2 comments:

सुनील सुयाल said...

सर थोडा सरल करके लिखे ! वैसे आपका अतीत देख कर अच्छा लगा

सुनील सुयाल said...

सब मशरूफ है तुम्हारी ही तरह ....याद तुम भी आते हो उन्हें ,तुम्हारी ही तरह ..लेकिन लिख और कह नहीं पाते शायद ..,तुम्हारी तरह ....