Tuesday, September 20, 2011

कैसे मैंने शाम बुझाई
कैसे रात अँधेरा लाई
कैसे मैंने करवट बदली
कैसे कब अंगड़ाई आई
कैसे पहर बीते सब
कैसे सुबह सर चढ़ आई

आती जाती राहों पर
उठती गिरती साँसों पर
हर ~पल~ की बोली लगाई
कैसे करें हिसाब उनका
कैसे,किससे करें उगाही
बीते पल सब रेत हुए अब
हुई हम संग बेबूझ ठगाई
कैसे कहें, है वक़्त कसाई
कैसे कहें, है वक़्त कसाई
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1 comment:

Geeta said...

'Kya khoya kya paya" ka hisab-kitab