कैसे रात अँधेरा लाई
कैसे मैंने करवट बदली
कैसे कब अंगड़ाई आई
कैसे पहर बीते सब
कैसे सुबह सर चढ़ आई
आती जाती राहों पर
उठती गिरती साँसों पर
हर ~पल~ की बोली लगाई
कैसे करें हिसाब उनका
कैसे,किससे करें उगाही
बीते पल सब रेत हुए अब
हुई हम संग बेबूझ ठगाई
कैसे कहें, है वक़्त कसाई
कैसे कहें, है वक़्त कसाई
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1 comment:
'Kya khoya kya paya" ka hisab-kitab
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